त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा श्री त्र्यंबकेश्वर नगरी में की जानेवाली एक महत्वपूर्ण पूजा है। त्रिपिंडी श्राद्ध का मतलब है तीन पीढ़ियों के पूर्वजों का विधिवत रूप से किया जानेवाला श्राद्ध है। इन तीन पीढ़ियों में पितृवंश, मातृवंश, गुरुवंश या ससुराल के वंश से कोई व्यक्ति का विधि-विधान से श्राद्ध नहीं हुआ है तो उन्हें त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा से मोक्ष प्राप्त होता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा ना किये जाने पर व्यक्ति को पितृ दोष की समस्या होती है। पितृ दोष में परिवार के मरे हुए सदस्य अपने वंशजों को शाप देते है जिसे पितृ शाप भी कहा जाता है।
पितृ शाप के कारण अनेक प्रकार की समस्याएँ आती है जैसे:
- नौकरी तथा व्यापार में असफलता एवं आर्थिक नुकसान होना।
- पति पत्नी के बिच में विवाद होना।
- घर-परिवार में कलह होना।
- शादी में विलम्ब या तलाक होना।
- संतान सुख से वंचित होना।
- आकस्मिक दुर्घटना का योग होना।
- अकाल मृत्यु का भय बना रहना।
पितृ दोष निवारण के ७ सरल उपाय क्या है?
- परिवार में तीन पीढ़ियों तक के सदस्यों की मृत्यु तिथि मालुम कर उस दिन पित्रों का श्राद्ध, पितृ तर्पण, ब्राह्मण भोजन, एवं दानादि कर्म करवाने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।
- पितृ गायत्री मंत्र का हर रोज १०८ बार माला से जप तथा अनुष्ठान करना चाहिए।
- पीपल के वृक्ष की १०८ प्रदक्षिणा करे एवं दोपहर के समय में जल, पुष्प, गंगाजल, दूध, अक्षत, एवं काले तिल चढ़ा कर अपने पूर्वजों का स्मरण करे और उनकी आत्मा की शांति के लिए भगवान शंकर से प्रार्थना करे।
- एक ताम्बे के लोटे में जल भर कर, अक्षत, रोली, लाल फूल डाल कर सूर्य देवता को अर्घ्य देकर ११ बार “ॐ श्री घृणि सूर्याय नमः”मंत्र का उच्चार करने से पित्रों को ऊर्ध्व गति प्राप्त होती है।
- हर रोज श्री दुर्गा सप्तशती एवं दुर्गा कवच का नित्य पाठ करने से पितृ दोष का प्रभाव कम होता है।
- ११ शनिवार तक हनुमान चालीसा एवं सुन्दर काण्ड का पाठ करने से पित्रों को प्रसन्नता मिलती है एवं उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है।
- त्र्यंबकेश्वर में त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा का अनुष्ठान करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।
त्रिपिंडी श्राद्ध क्यों करना चाहिए?
त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा अपने तीन पीढ़ियों के पूर्वजों को प्रेतत्व से मुक्ति दिलाने के लिया किया जाता है। परिवार के अनेक सदस्य ऐसे होते है जिनकी मृत्यु कुछ विशेष कारणों से होती है, जैसे अकाल मृत्यु, या किसी दुर्घटना से मृत्यु या कोई व्यक्ति की शादी के पहले ही मृत्यु हो जाने से उनकी आत्मा को शांति नहीं मिलती। आत्मा को समाधान न मिलने से ऐसी आत्माएँ धरती पर अनंत काल तक भटकती है और इस कष्ट से मुक्ति की अभिलाषा अपने परिवार में जन्मे वंशजों से करती है। ऐसी स्थिति में हमारे प्राचीन धर्मशास्त्रों में पित्रों की शांति के लिए त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा का आयोजन किया जाता है।
त्रिपिंडी श्राद्ध कौन कर सकता है?
- त्रिपिंडी श्राद्ध को काम्य भी कहा जाता है इसीलिए यह अनुष्ठान माता-पिता के जीवित होने पर भी किया जाता हैं।
- त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा का अनुष्ठान विवाहित पति-पत्नी को जोड़े के साथ करना होता है।
- पत्नी जीवित न होने पर विधुर और पति जीवित न होने पर विधवा स्त्री द्वारा भी यह पूजा की जाती है।
- जो व्यक्ति अविवाहित है उसे भी इस पूजा का अधिकार प्राप्त है।
- हिंदू विवाह पद्धति के अनुसार विवाह के बाद स्त्री को पति के घर जाना पड़ता है। इसलिए माता-पिता की मृत्यु होने के बाद पिंडदान, तर्पण तथा श्राद्ध करने का अधिकार उसे नहीं होता है। किंतु स्त्री भी त्रिपिंडी श्राद्ध में अपना सहयोग दे सकती है।
त्रिपिंडी श्राद्ध के नियम:
- त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा के मुहूर्त से एक दिन पहले त्र्यंबकेश्वर में उपस्थ्ति रहना आवश्यक है।
- श्राद्धकर्ता के पिता अगर जीवित नहीं है, तो उनके पुत्र को विधि के समय अपने केश मुंडवाने पड़ते है। श्रद्धाकर्ता के पिता अगर जीवित है तो उन्हें केश मुंडवाने की आवश्यकता नहीं है।
- यह पूजा सफेद वस्त्र पहनकर की जाती है, तथा पुरुषों ने सफेद कुर्ता और धोती एवं महिलाओँ ने सफेद साडी धारण करना आवश्यक है।
- त्रिपिंडी श्राद्ध के समाप्ति के पश्चात पूजा के वस्त्र वहीं पर छोड़ दिए जाते है एवं साथ लाए हुए नए वस्त्र धारण किये जाते है।
त्रिपिंडी श्राद्ध में क्या क्या सामान लगता है?
श्री ब्रह्मा-विष्णु-महेश देवताओंकी चांदी, सुवर्ण तथा ताम्र से निर्मित प्रतिमा, शतावरी, आवला, रोली, अक्षत, पुर्णपात्र, जनेऊ, रक्षा सूत्र, नारियल, सुपारी, पिंडदान के लिए तिल, लौंग, जौ, ईलायची, गुड़, श्रीखंड, लड्डू, बर्फी, चीनी, घी, दही, शहद, अगरबती, कपूर, केसर, गोपी चंदन, गुलाल, गेहूँ, मूंग, चना दाल, ऊड़द दाल, पिली सरसों, सिन्दुर, हल्दी पाउडर, आसन, नवग्रह समिधा, हवन पुडा, पंच रत्न, पंचमेवा, फूल माला, हवन काष्ट, हरा कपड़ा, पीला कपड़ा, खोवा, रुद्राक्ष माला, घंटा, शंख, कलश, मटका, गोमूत्र, आम लकडी, उपला, तुलसी पता, कमलगट्टे, गंगाजल, चावल के पिंड।
त्रिपिंडी श्राद्ध कैसे किया जाता है?
- त्रिपिंडी श्राद्ध के समय श्राद्धकर्ता को त्र्यंबकेश्वर स्थित कुशावर्त कुंड में स्नान करके पूजा के वस्त्र धारण करना होता है। इस विधि को “क्षौर कर्म” कहा जाता है।
- इस पूजा का आयोजन ख़ास तौर पर ताम्रपत्रधारी पण्डितजी द्वारा किया जाता है। जिन्हे तीर्थपुरोहित भी कहा जाता है। केवल इन्हे त्र्यंबकेश्वर मंदिर में पूजा-आराधना करने का अधिकार प्राप्त है।
- श्री ब्रह्मा-विष्णु-महेश की मूर्तियाँ स्थापित कर विधिवत रूप से पूजन किया जाता है।
- इस पूजा में मृत व्यक्तियों के बारे में विस्तृत जानकारी ना होने से केवल अनादिष्ट गोत्र शब्द से मंत्रो का जप किया जाता है।
- पिंडदान के लिए तीन पीढ़ियों के लिए पिंड बनाकर उनकी शहद, चीनी एवं शुद्ध घी अर्पित करके पूजन किया जाता है तथा त्रिदेवों से अपने पूर्वजों की मुक्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।
- पिंड की पूजा करने के बाद तर्पण के माध्यम से विष्णु पूजन किया जाता है।
- पूजा की समाप्ति होने पर त्र्यंबकेश्वर पण्डितजी को सुवर्ण, चाँदी, छाता, खडावा, कमंडलू तथा पात्र आदि वस्तुओंका दान देकर दक्षिणा दी जाती है। जिससे पूजा संपन्न होती है।
त्रिपिंडी श्राद्ध कब किया जाता है?
त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा का अनुष्ठान मुख्य रूप से पितृपक्ष के महीने में अमावस्या के दिन करना विशेष फलदायी माना जाता है। इसके अतिरिक्त लिए पूर्णिमा से आगे १६ दिन पित्रों के तर्पण के लिए उत्तम माने जाते है। त्र्यंबकेश्वर जैसे विशेष धर्मक्षेत्र पर आप हर महीने यह श्राद्ध एक विशेष मुहूर्त का चुनाव करने के बाद कर सकते है।
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
If you want to read this blog in English visit: Tripindi Shradha
-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा की दक्षिणा क्या है?
त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा के कालावधि में उपयोग की जानेवाली सामग्री के आधार पर इस पूजा की दक्षिणा निर्भर होती है।
त्रिपिंडी श्राद्ध के फायदे:
- त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा कराने से पूर्वजों की अतृप्त इच्छाएँ शांत होकर उनका आशीर्वाद भी मिलता है।
- त्रिपिंडी श्राद्ध पूजा के पश्चात किए जाने वाले शादी जैसे मंगल कार्यों में सफलता तथा आशिष भी प्राप्त होता है।
- पूजा के बाद सभी क्षेत्र में सफलता मिलती है एवं सामाजिक प्रतिष्ठा में उन्नति साध्य होती है।
- नौकरी में रुका हुआ प्रमोशन प्राप्त होता है एवं व्यापार में धन में वृद्धि प्राप्त होती है।
- घर-परिवार में होनेवाला कलह समाप्त होकर आपसी रिश्तों में सुधार होकर आनंद की प्राप्ति होती है।
- प्रकृति में सुधार होकर शारीरिक बीमारियों में राहत प्राप्त होती है।
- शिक्षण एवं विवाह से जुडी सभी परेशानियाँ दूर होती है।
त्रिपिंडी श्राद्ध मुहूर्त २०२१:
भारतीय शास्त्रों के अनुसार इस पूजा का मुहूर्त पता होना आवश्यक है। त्र्यंबकेश्वर पण्डितजी द्वारा आपको त्रिपिंडी श्राद्ध तिथि एवं मुहूर्त बताया जाता है। केवल आपको त्र्यंबकेश्वर आने से पूर्व २ से ३ दिन पहले ही मुहूर्त सुनिश्चित करना है। त्रिपिंडी श्राद्ध के बारे में जानकारी विस्तृत रूप से जानने के लिए आप निचे दी गयी वेबसाईट पर जाकर त्र्यंबकेश्वर पण्डितजी से संपर्क कर सकते है।