कालसर्प दोष पूजा त्र्यंबकेश्वर में होने वाली अति महत्वपूर्ण पूजा में से एक पूजा है। त्र्यंबकेश्वर क्षेत्र नासिक (महाराष्ट्र) से २८ किमी अंतर पर स्थित है। १२ ज्योतिर्लिंग में त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग अतिपवित्र माना जाता है, क्युकी यहाँ ब्रह्मा-विष्णु-महेश का एकत्रित स्वरूप विराजमान है। सभी कष्टों से मुक्त करने हेतु गंगा माता का यहाँ उगम हुआ है। इसीलिए त्र्यंबकेश्वर मंदिर में पूजा करने से आपको अनेक लाभ मिलते है।
कालसर्प योग व्यक्ति के जन्मकुंडली में पाया जाने वाला दोष है। काल का अर्थ होता है समय और सर्प का अर्थ होता है साँप। सर्प की लंबाई हमें देरी से बितने वाले समय को दर्शाती है। इसी तरह से कालसर्प योग भी जीवन में लंबे समय तक बना रहता है। इस लंबे समय में साँप का विष यानी दुःख हमारे जीवन में फैल जाता है; जिसे कालसर्प योग दोष भी कहा जाता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कालसर्प योग जन्मकुंडली में राहु और केतु की स्थिति को देखकर पता लगाया जाता है। राहु ग्रह के अधिदेवता काल है एवं केतु के प्रत्यधिदेवता सर्प (साँप) है। व्यक्ति के जन्मकुंडली में जब सारे ग्रह राहु और केतु के मध्य में आ जाते है तब कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग में राहु ग्रह सर्प के मुख को दर्शाता है तथा केतु सर्प की पूंछ को दिखाता है। साँप जब जमीन पर रेंगता है तो उसका शरीर संकुचित होता है और पुनः फैलता है वैसेही कालसर्प योग में राहु और केतु के बीच बाकी ग्रह होते है। इस योग के कारण व्यक्ति को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
१) व्यक्ति शारीरिक व मानसिक रूप से परेशान रहता है।
२) व्यापार तथा कारोबारी में हमेशा नुकसान बना रहता है।
३) कर्ज चुकाने में देरी होने से सामजिक कठिनाइयाँ बढ़ती है।
४) बच्चों का लालन पोषण करने के लिए उचित धन का अभाव होता है।
५) अनेक बार किए हुए प्रयत्न भी असफलता में बदल जाते है।
६) संतान सुख में कमी आती है।
७) विवाह के लिए देरी या विवाह में विघ्न आने की संभावना होती है।
८) पति-पत्नी में कलह बने रहते है।
९) व्यक्ति आपराधिक मामले में फंस जाता है।
१०) काम काज में मन नहीं लगता।
कालसर्प दोष व्यक्ति के जीवन में ५५ वर्षों तक रहता है।
निचे दिए गए उपायों से कालसर्प दोष का प्रभाव कम होता है -
“ॐ रां राहवे नम:”
“ॐ कें केतवे नमः”
त्र्यंबकेश्वर में की जानेवाली कालसर्प योग दोष पूजा में प्रथम पूजा का संकल्प लिया जाता है। संकल्प के बाद श्री गणेशजी का पूजन होता है। जिसके पश्चात पुण्याहवाचन, मातृका पूजन, नांदी श्राद्ध, नवग्रह पूजन, रुद्रकलश पूजन, बलिप्रदान और पूर्णाहुति दी जाती है। कालसर्प दोष पूजा के पश्चात व्यक्ति की सभी परेशानियाँ दूर होकर शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक प्रगति होती है।
१) व्यक्ति के वैवाहिक जीवन में खुशहाली
२) सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि
३) पारिवारिक शांति का लाभ
४) व्यापार में विकास
५) नौकरी के पद में उन्नति
६) मानसिक शांति का लाभ
७) आर्थिक मामलों से मुक्ति
अनन्त कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु लग्न भाव में तथा केतु सप्तम भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। अनन्त कालसर्प योग के कारण व्यक्ति को जीवन में परेशानियों का सामना पड़ता है। स्वास्थ्य से जुडी शिकायतें, वैवाहिक जीवन में बाधाएं, मानसिक पीड़ा, व्यवसाय में आर्थिक हानि, न्यायालयीन मुकदमों जैसी तनावभरी गतिविधियों से गुजरना पड़ता है।
कुलिक कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु दूसरे भाव में तथा केतु अष्टम भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। कुलिक कालसर्प योग के परिणाम से व्यक्ति को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ता है। कर्ज का बोझ ढोना पड़ता है। बहुत कठिन परिश्रम के बाद भी सफलता नहीं मिलती। कुलिक कालसर्प योग के कारण मित्र भी शत्रु बन जाते है। सफर के दौरान दुर्घटना का भय बना रहता है।
वासुकी कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु तीसरे भाव में तथा केतु नवम भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। वासुकी कालसर्प योग के प्रभाव से परिवार में भाई-बहन तथा रिश्तेदारों से परेशानी होती रहती है। सभी लोग मिलकर ऐसे व्यक्तियों का खूब फायदा उठाते है। ऐसे व्यक्तियों को पारिवारिक सुख प्राप्त नहीं होता और मानसिक तनाव भी सहना पड़ता है।
शंखपाल कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु चतुर्थ भाव में तथा केतु दशम भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। शंखपाल कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति के शैक्षणिक जीवन में अनेक उतार चढ़ाव देखने मिलते है। चन्द्रमा की पीड़ा होती है जिस कारण व्यक्ति का मानसिक संतुलन खराब होता है। ऐसे में हाथ में लिया कार्य पूरा नहीं हो पाता और आर्थिक परेशानियों का सामना पड़ता है।
पद्म कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु पंचम भाव में तथा केतु एकादश भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। पद्म कालसर्प योग के कारण व्यक्ति को संतानप्राप्ति में विलंब होता है, मनमें अचानक से संन्यास लेने की भावना जागृत हो जाती है। जिस कारण दाम्पत्य जीवन आहत होने की संभावनाए बन जाती है। ऐसे व्यक्ति को मित्रों से आर्थिक नुकसान होता है।
महापद्म कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु छठे भाव में तथा केतु द्वादश भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। महापद्म कालसर्प योग के परिणाम स्वरूप व्यक्ति का जीवन संघर्ष तथा कठिनाइयों से भरा होता है। ऐसे व्यक्ति को जीवनसाथी तथा परिवार से दूर रहना पड़ सकता है। जुए की लत, बुरी आदतें, कर्जा तथा कानूनी मामलों में अदालत के चक्कर लगाने पड़ते है।
तक्षक कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु सप्तम भाव में तथा केतु लग्न भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य मंं सारे ग्रह स्थित हों। तक्षक कालसर्प योग के परिणाम स्वरूप व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से विमुख होना पड़ता है। व्यापार में साझेदारी करने से आर्थिक नुकसान होता है, जिस कारण जीवन में निराशा छाने लगती है।
कार्कोटक कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु अष्टम भाव में तथा केतु द्वितीय भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। कार्कोटक कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति धन की बेफजूल खर्ची होती है। आय से ज्यादा धन का व्यय होने से बचत नहीं होती, जिस कारण मन को भय और चिंता घेर लेती है।
शंखचूढ़ कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु नवम भाव में तथा केतु तीसरे भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। शंखचूढ़ कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति को माता और पिता का सुख नहीं मिल पाता। जीवन में असफलता और निराशा चारो ओर से घेर लेती है। मस्तिष्क से जुडी बीमारियां घेर लेती है।
घातक कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु दशम भाव में तथा केतु चतुर्थ भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। घातक कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति की जीवन यापन में आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता है। वैचारिक स्थिरता बिगड़ती है। अकाल मृत्यु का भय बना रहता है।
विषधर कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु एकादश भाव में तथा केतु पंचम भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। विषधर कालसर्प योग के परिणाम स्वरूप व्यक्ति को आजीवन अकेलापन महसूस हो सकता है। पत्नी तथा परिवार के अन्य व्यक्तियों के साथ विवाद और तनाव बना रहता है।
शेषनाग कालसर्प योग जन्मकुंडली में तब दिखाई देता है, जब राहु द्वादश भाव में तथा केतु छ्ठे भाव में उपस्थित हो और इन दोनों ग्रहों के मध्य में सारे ग्रह स्थित हों। शेषनाग कालसर्प योग के प्रभाव से व्यक्ति को पत्नी से तलाक लेने की नौबत आ सकती है। दुर्भाग्य पीछा नहीं छोड़ता। समाज में मान-सन्मान खोना पड़ सकता है।
पूजा की दक्षिणा यह पूजा में इस्तेमाल होने वाली सामग्री एवं पण्डितजी की संख्या पर निर्भर होती है। आप पूजा होने के बाद भी दक्षिणा दे सकते है।
कालसर्प दोष की पूजा त्र्यंबकेश्वर में ताम्रपत्रधारी पण्डितजी के निवासस्थान पर होती है। अनेक पीढ़ियों से त्र्यंबकेश्वर मंदिर में पूजा करने का अधिकार पण्डितजी को प्राप्त है। यह अधिकार ताम्रपत्र पर अंकित किया गया है, जो पेशवाकाल से सुरक्षित रखा गया है।
पुरोहित संघ वेबसाइट से आप ऑनलाइन ऑनलाइन त्रिम्बकेश्वर के पंडित जी बुक कर सकते हो।
काल सर्प पूजा के मुहूर्त जानने के लिए आपको त्रिम्बकेश्वर पंडितजी से संपर्क करना होगा। वो आपकी कुंडली देखकर अच्छा मुहूर्त बताएँगे। पुरोहित संघ के ऑनलाइन पूजा बुकिंग पोर्टल के साथ आप ऑनलाइन पूजा के पंडितजी भी बुक कर सकते हो। अधिक जानकारी के लिए पुरोहित संघ के ऑफिसियल वेबसाइट को जरूर भेट दे।